श्वेता पुरोहित। आज से वैशाख मास आरंभ हो रहा है। इसके अंतर्गत वैशाख मास माहात्म्यम् प्रस्तुत है:
श्रीमते रामचंद्राय नमः ॥
श्री जानकी वल्लभो विजयते ॥
॥अथ स्कंदपुराणे वैष्णवखण्डान्तर्गत-वैशाख मास माहात्म्यम्॥
प्रथम अध्याय
मनुष्यों में श्रेष्ठ नर और नारायण को नमस्कार कर और देवी सरस्वती तथा व्यासजी को प्रणाम कर उनकी जय। सूतजी बोले परमेष्ठी ब्रह्मा के पुत्र नरदजी से राजा अम्बरीष ने पवित्र वैशाख मासका माहात्म्य पूछा। राजा अम्बरीप बोले- हे ब्रह्मन् ! जो सम्पूर्ण महीनों के माहात्म्य वर्णन किये वह मैंने अच्छी तरह से सुने। सभी महीनों में वैखाख मास श्रेष्ठ, अतः वैशाख का माहात्म्य विस्तार से कहिये, मुझे सुनने की इच्छा है ।
यह मास विष्णु भगवान को प्यारा क्यों है और इसमें कौन-कौन धर्म कार्य उन्हें क्यों प्रिय है।
क्या दान करना चाहिये ? उसका क्या फल होता है ? ये सब कार्य किस देवता को प्रसन्न करने के लिये करने चाहिये इस मास में करने योग्य काम क्या है, कौन से कार्य विष्णु भगवान् को प्रिय हैं ? इसमें क्या दान किसलिये किया जाता है, उसका फल और उद्देश्य क्या है। इस मास में किन वस्तुओं से भंगवत् पूजन करना चाहिये, हे नारद ! यह सब मुझे विस्तार से सुनाइये, मैं श्रद्धा से सुनूँगा।
नारदजी बोले-हे राजन् ! सभी महीनों का माहात्म्य पहिले विष्णुजी ने लक्ष्मीजी से किया था, जो मुझसे ब्रह्माजी ने कहा है। सब महीनों में कार्त्तिक, माघ ओर वैशाख मास श्रेष्ठ हैं। इन तीनों में भी वैशाख मास सबसे श्रेष्ठ माना गया है।
यह महीना माता के समान सब जीवों को अभीष्ट फल देने वाला है। इस महीने में दान, यज्ञ, और तप करने से सब पापों का नाश हो जाता है। यह महीना धर्म, कर्म, यज्ञ और तप का सार है। इसका देवताओं भी प्रशंसा करते हैं। यह मास विद्याओं में वेद विद्या के समान, मंत्रों में प्रणव। वृक्षों में कल्पवृक्ष, गौओं में कामधेनु नागों में
शेष पक्षियों में गरुड़ के समान है, देवों में विष्णु वर्णों में ब्राह्मण प्रिय वस्तुओं में प्राण और मित्रों में भार्या के समान है। नदियों में गंगा के समान, तेजस्वियों में सूर्य शस्त्रों में चक्र, धातुओं में स्वर्ण। वैष्णवों में शिवजी के समान, रत्नों में
कौस्तुभ मणि तुल्य धर्म के लिये सब में उत्तममास है।
इस मास के समान विष्णु भक्ति उत्पन्न करने वाला और कोई महीना नहीं है। मेष की संक्रान्ति वैशाख मास में, सूर्योदय से पहले जो मनुष्य स्नान करता है उससे विष्णु भगवान् लक्ष्मीजी सहित अत्यन्त प्रसन्न होते हैं। जैसे अन्न से सब प्राणी प्रसन्न होते हैं। वैसे ही वैशाख स्नान से निस्सन्देह विष्णु भगवान प्रसन्न होते हैं, वैशाख-स्नान करने वाले मनुष्य और जो उनका अनुमोदन करता है, वह भी सब पापों से छूटकर विष्णुलोक जाता है।
मेष राशि के सूर्य में (वैशाख मास में) प्रातःकाल एक बार भी स्नान कर जो मनुष्य आह्निक करता है । वह महापापों से छूटकर विष्णुलोक पाता है । वैशाख मास में स्नान करने के लिए जो मनुष्य एक पग भी चलता है उसे दस हजार अश्वमेध यज्ञ करने का फल मिलता है, इसमें सन्देह नहीं । या एकाग्रचित हो जो ऐसा संकल्प भी करता है । उसे भी निस्सन्देह सौ यज्ञोंका पुण्य मिलता है। वैशाख-स्नान के लिये धनुष बराबर भी जो मनुष्य चलता है वह संसार के बन्धनों से छूट बैकुण्ठ धाम को जाता है।
ब्रह्माण्ड भर में तीनों लोकों में जितने तीर्थ हैं, हे राजेन्द्र ! वे सब नगर बाहर के थोड़े से जलमें ही रहते हैं अर्थात वैशाख मास में स्नान के लिए किसी तीर्थ में न जा सके तो नगर के बाहर किसी जलाशय में स्नान करना चाहिए। यम की आज्ञा से शास्त्रों में लिखे पाप उसी समय तक गरजते हैं जब तक मनुष्य वैशाख स्नान नहीं करता।
हे राजन, विष्णु भगवान की आज्ञा से वैशाख वैशाख मास में तीर्थादि के अधिष्ठाता देवता सूर्योदय से ६ घड़ी तक जल के बाहर मनुष्यों के हित के लिए ठहरते हैं। हे राजेन्द्र ! उस समय तक भी जो लोग स्नान के लिए नहीं आते वे उनको दारुण शाप दे अपने स्थान को चले जाते हैं। इसलिए वैशाख-स्नान अवश्य करना चाहिए।
इति श्रीस्कंदपुराणान्तर्गतवैशाखमासमाहात्म्ये वैशाखस्नानमाहात्म्यवर्णनं नाम प्रथमोऽध्यायः