श्वेता पुरोहित। नक्षत्रों की गति बहुत सूक्ष्म है। वह बहुत लम्बे समय में ही विचार पथ में आती है। अतः सामान्य भाषा में कहा जाता है कि नक्षत्र या तारे स्थिर हैं। नक्षत्रों की हृदय गति नगण्य होने के कारण ऐसा प्रतीत होता है कि सूर्य ही उनके पास जाता है। जब सूर्य की निकटता के कारण तारे उसके प्रकाश में तिरोहित हो जाते हैं तो उन्हें अस्त मान लिया जाता है। इसी कारण से तारे सदा पश्चिम में अस्त होते हैं। सूर्यसिद्धान्त में ऐसा ही बताया गया है।
लेकिन कुछ तारे ऐसे भी हैं जो सूर्य के प्रकाश में भी कभी नहीं छिपते हैं। जब सूर्य इनके निकट आता है तो इनकी उत्तर की ओर इतनी अधिक स्थिति होती है कि सूर्य के उदयास्त से बहुत आगे पीछे ही इनका उदयास्त होने के कारण ये दिखते हैं।
अभिजिब्रह्महृदयं स्वातीवैष्णववासवाः।
अहिर्बुध्न्यमुदकत्वान्न लुप्यन्तेऽर्करश्मिभिः ।।
(सूर्य सिद्धान्त)
अर्थात्:
‘अभिजित् ब्रह्महृदय, स्वाति, श्रवण, धनिष्ठा, उत्तरा भाद्रपद तारे (नक्षत्र) कभी भी सूर्य प्रकाश में अस्त नहीं होते हैं।