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India Speak Daily > Blog > धर्म > उपदेश एवं उपदेशक > कंजर का पुनर्जन्म
उपदेश एवं उपदेशक

कंजर का पुनर्जन्म

ISD News Network
Last updated: 2024/04/22 at 11:23 AM
By ISD News Network 55 Views 8 Min Read
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8 Min Read
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श्वेता पुरोहित। सुप्रतिष्ठित विद्वान् शास्त्रार्थ-महारथी पं० श्री बिहारी लाल शास्त्री काव्यतीर्थजी एक बार हमारे निवास स्थान पिलखुवा में पधारे थे। उन्होंने प्रसंगवश श्रीराम नाम जप, गङ्गा स्नान और दान-पुण्य की महिमा के संदर्भ में पुनर्जन्म की सत्यता से सम्बन्धित एक घटना का वर्णन किया था। उनके श्रीमुख से कही हुई वह सत्य घटना इस प्रकार है-

‘उझानी जिला बदायूँ में एक कस्बा है। एक बार कुछ राजपूत लोग जो उझानीके पास के ही किसी गाँव के निवासी थे, अपने गाँव से श्रीभगवती भागीरथी का स्नान करने की इच्छा से सपरिवार जा रहे थे। उनकी अपने घर की सवारी थी, उसी में बैठकर वे लोग आये थे। अपने गाँव से चलकर जब उझानी आये तो उझानीके चौराहे पर विश्राम करने की दृष्टि से वे कुछ देरके लिये रुक गये। बिलकुल सड़क के पास उन दिनों कुछ कंजर लोग रहा करते थे। उन कंजरों (खानाबदोश लोग) की वहाँ पर झोपड़ियाँ पड़ी हुई थीं।

इन ठाकुर लोगों के साथ में इनका एक छोटा बालक भी था, जिसकी आयु लगभग ५ वर्षकी थी। वह बालक घरवालों के पास से चलकर सामनेवाले उन कंजरों के पास उनकी झोपड़ियों में पहुँच गया। उसने वहाँपर जाकर उन कंज़रों के सामने उनमें की एक कंजरी का नाम लेकर पुकारा। कंजर की उस स्त्रीको उस बालक के इस प्रकार बिना जाने-पहचाने अपना नाम लेकर पुकारने पर बड़ा आश्चर्य हुआ। कंजर की स्त्री ने उस बालक से पूछा-‘अरे, तू किसको पुकारता है? तू कौन है?’ इसपर उस ठाकुर के लड़के ने कहा- ‘क्या तू मुझे नहीं जानती ? क्या तू मुझे भूल गयी?’ कंजरीने कहा- ‘मैं तुझे नहीं जानती कि तू कौन है और कहाँका रहनेवाला है?’

ठाकुर के लड़के ने कहा- ‘मैं तेरा पति हूँ। तू मेरी स्त्री है।’ उस कंजरी को एक छोटे से बच्चे के मुख से यह सुनकर बड़ा आश्चर्य हुआ कि ‘यह छोटा-सा ४-५ वर्ष का बच्चा है और मैं इतनी बड़ी आयु की स्त्री हूँ, फिर यह मुझे अपनी स्त्री कैसे बताता है !!’

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कंजरी ने कहा- ‘अरे, तू मेरा पति कैसे बनता है? मैं जानती भी नहीं हूँ कि तू कौन है। मेरा पति तो कभीका मर गया है। अब मेरा पति कहाँसे आया? तू यह क्या कहता है?’

उत्तर में उस बालक ने कहा- ‘तुझे पता नहीं कि तेरे पति का नाम मोहन सिंह कंजर था?’

कंजरी ने कहा- ‘हाँ, मेरे पति का नाम मोहन सिंह कंजर था, पर वह तो मर गया।’ ठाकुर के लड़के ने कहा- ‘मैं ही तेरा पति मोहन सिंह कंजर हूँ।’

लड़के ने बताया कि ‘मैं पहले जन्म में तेरा पती मोहन सिंह कंजर था और अब मैंने इन ठाकुरों के घरमें आकर जन्म ले लिया है।’ लड़के ने वहाँ पर बैठे हुए सब कंजरों को भी पहचान लिया। उसने उस समय की और सब बातें भी बतानी प्रारम्भ कर दीं और बहुत-सी गुप्त बातें भी, जो उससे पूछी गयी, उसने बतायी। उसकी बतायी हुई सभी बातें सत्य थीं, उन्हें सुनकर सभी कंजरों और कंजरियों ने उनकी सत्यता को स्वीकार किया।

इसलिये उन्होंने झट से उस बालक को अपनी गोदमें उठा लिया। इधर जब उन ठाकुरों ने देखा कि हमारा बच्चा यहाँ पर नहीं है तो उन्होंने अपने उस बच्चे की तलाश शुरू की। सामने कंजरों की झोपड़ियों की ओर उनकी दृष्टि गयी तो देखा कि वह बच्चा कंजरों के पास है। कंजर उसे अपनी गोद में उठाकर बड़े प्रेम से खिला रहे हैं। ठाकुर लोग भागे हुए वहाँ पर गये और जाकर उन कंजरों से अपने बालक की माँग की। कंजरों ने कहा- ‘नहीं, यह तो हमारा मोहन सिंह कंजर है। हम इसे अपने पास रखेंगे।’

ठाकुरोंने उन कंजरोंको बहुत कुछ समझाने-बुझाने का प्रयत्न किया कि किसी प्रकार हमारे बालक को हमें सौंप दें, पर वे लाख समझाने पर भी उस बालक को उन्हें देने के लिये तैयार नहीं हुए। अब तो ठाकुरों में और उन कंजरों में आपस में बड़ी छीना-झपटी और कहा-सुनी शुरु हो गयी।

जब झगड़ा बहुत ज्यादा बढ़ गया और सुलझा नहीं तो ठाकुरों ने थाने में जाकर पुलिस को सूचना दी कि ‘हमारे बालक को कंजरों ने ले लिया है। नहीं दे रहे हैं। उनसे हमारा बालक हमको दिलवाया जाय।’ पुलिस घटना स्थल पर पहुँच गयी। उसने उन कंजरों से उस लड़केको उन ठाकुरों को देनेके लिये कहा और उन्हें धमकाया भी, समझाया भी, फिर भी वे कंजर लड़के को देने के लिये तैयार नहीं हुए।

पुलिस उन ठाकुरों के बालक को कंजरों से अपने क़ब्जे में लेकर उझानी के सुप्रतिष्ठित रईस रायबहादुर श्रीव्रजलाल भदावरजी के सामने ले गयी। ठाकुर लोग और वे कंजर भी वहाँ पर पहुँच गये। ज्यों ही वह बालक श्रीभदावरजी के सामने पहुँचा तो उसने तुरंत भदावरजी को पहचान लिया। उसने उनका शुभ नाम लेकर कहा कि भदावरजी ‘राम राम।’

रायबहादुर श्रीव्रजलाल भदावरजी को उस छोटे से बालकके मुखसे ये शब्द सुनकर बड़ा आश्चर्य हुआ। उन्होंने चकित होकर उस बालक से पूछा- ‘भाई तू कौन है? हमें तू पहले कभी आजतक नहीं मिला है; फिर तू हमें कैसे जानता है? तुमने हमें कहाँ पर देखा है?’ इस पर उस बालक ने कहा- ‘रायबहादुर साहब ! मैं पूर्वजन्म का आपका कंजर हूँ। मेरा नाम मोहनसिंह है और मैं जब कंजर था तो उस समय आपके घरपर आकर आपकी कोठी के लिये खसके पर्दे बनाया करता था।’

माननीय रायबहादुर साहब ने जब ये बातें सुनीं तो वे दंग रह गये। उस बालक की बतायी सभी बातें अक्षर-अक्षर बिलकुल सत्य थीं। उन्होंने उस बालक की बातोंकी पुष्टि की कि मोहन सिंह कंजर हमारी कोठी के लिये खसके पर्दे बनाया करता था। रायबहादुर साहब ने उन कंजरों को समझा-बुझाकर, उस बालकको उन कंजरों से उन ठाकुरों को दिलवा दिया।

माननीय रायबहादुर श्रीव्रजलाल भदावरजी ने मुझे बताया कि ‘इस कंजर का कंजरसे धनाढ्य ठाकुरों के घर में जन्म लेने का कारण यह है कि जब यह पूर्वजन्म में मोहन सिंह कंजर था, तो इतना संयमी और इतना सात्त्विक था कि कभी भी मांस नहीं खाता था। मांस-मछली-अंडे-मुर्गोंसे बिलकुल दूर रहता था। यह किसी भी जीवको कभी न तो मारता था और न शिकार खेलता था। यह श्रीगङ्गाजीमें बड़ी श्रद्धा-भक्ति रखता था। कंजर होकर भी यह श्रीगङ्गा-स्नान करने के लिये जाया करता था। नित्य श्रीरामनाम का जप किया करता था। इसने गरीब होकर भी अपनी खून-पसीने की गाढ़ी कमाई का पैसा- पैसा जोड़कर ४०० रुपये इकट्ठे किये थे और ये रुपये मुझे देकर मेरे द्वारा एक कुँआ भी बनवाया था कि जिससे सब लोग उस कुएँ का पानी पीकर अपनी प्यास बुझा सकें। इसी श्रीरामनाम के जप करने, गङ्गा-स्नान करने, कुआँ बनवाने और जीवों पर दया करने आदि पुण्यों के प्रताप से इसे ऐसा जन्म प्राप्त हुआ है।’

परलोक और पुनर्जन्म की सत्य घटनाएँ पुस्तक का एक अंश

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