यह हमारे नाई (हज्जाम) हैं। इनका नाम छोटे है। सारे गांव के यही नाउ हैं। घर पर आकर दाढ़ी बनाते हैं। जिनके पास अधिक जमीन है वो इन्हें हर साल फसल कटने पर 50 किलो अनाज, जिनके पास कम जमीन है वो उसके अनुसार 25-40 किलो अनाज देते हैं।
जिनके पास जमीन नहीं है वो इनको पैसे देते हैं। अभी इनकी बड़ी बेटी का विवाह हुआ, उसमें समूचे गांव ने अपनी सुविधानुसार धन, कपड़े, अनाज एवं अन्य व्यवस्था से मदद की। बहुत अच्छे से बेटी का विवाह संपन्न हो गया। गांव के एक पंडित जी ने अपने दरवाजे पर इनके एक बेटा का सैलून भी खुलवा दिया है, बिना कोई शुल्क लिए? हमारे आरक्षणवादी नेता क्या दिल्ली आदि में बिना जगह का किराया भरे किसी का सैलून खुलवा सकते हैं?
इनके बिना हमारे गांव के किसी ब्राहण, भूमिहार अर्थात किसी सवर्ण के घर के बच्चे का जन्म/ मुंडन/ उपनयन/विवाह/मृत्यु आदि का संस्कार संपन्न नहीं हो सकता। जाति व्यवस्था में इनकी शुद्धता और इनकी भूमिका ब्राह्मणों के बराबर है। जिनके भी यहां संस्कार कर्म होता है, वो इनकी हर मांग को इच्छानुरूप पूरा करते हैं।
यह थी हमारी जाति व्यवस्था, जो समाज के अन्नयोनाश्रित संबंधों पर आधारित थी, न कि शोषण पर। इनका शोषण मुगलों/ब्रिटिशर्स और स्वतंत्रता के बाद के आरक्षणवादी नेताओं व राजनीतिक पार्टियों ने किया है! कैसे?
तो सुनिए, 10वीं-11वीं सदी में महमूद गजनवी के साथ आए अल बरूनी ने जो लिखा है, उसे पढ़िए ताकि आप जान जाएं कि आक्रांताओं से पूर्व भारत की जाति व्यवस्था कैसी थी? अलबरूनी ने लिखा है, “हिंदुओं में चार जातियां थीं, किंतु कोई अस्पृश्यता नहीं थी।” अल बरूनी के शब्दों में, ‘इन जातियों में जो विभिन्नताएं हों, किंतु वे नगरों और गांवों में, समान घरों, बस्तियों में साथ-साथ रहते हैं।’
अब छोटे नाई पर लौटते हैं। छोटे के अनुसार ‘इनका व्यवसाय तो अब छिन ही रहा है, इनके परिवार को आरक्षण का कोई लाभ भी नहीं मिला है।’ इनके अनुसार ‘आरक्षण का लाभ भी जाति के संपन्न और मजबूत लोगों को ही मिलता है।’ अर्थात् आरक्षणवादी व्यवस्था ने अभी तक छोटे जैसे लोगों और उनके परिवार को ठीक से शिक्षित तक नहीं किया, लाभ देना तो दूर की बात है! हां आरक्षणवादी नेता जरूर इनके वोट से सत्ता की मलाई खाते, सुख-सुविधा संपन्न VIP बनते और विद्वेष आधारित एक ‘नये कल्चर’ का निर्माण करते चले गये।
बाबा साहेब आंबेडकर को यह आशंका थी, इसीलिए उन्होंने आरक्षण व्यवस्था में तीन शर्तें जोड़ी थी:- १) 10 साल में यह समीक्षा हो कि जिन्हें आरक्षण दिया गया, क्या उनकी स्थिति में कोई सुधार हुआ या नहीं? २) यदि आरक्षण से किसी वर्ग का विकास हो जाता है तो उसके आगे की पीढ़ी को आरक्षण का लाभ नहीं देना चाहिए। ३) आरक्षण को वैशाखी न समझा जाए। यह केवल सहारा है।
Upper Caste Reservation: जानें- आंबेडकर ने क्यों कहा था ‘आरक्षण बैसाखी नहीं सहारा है’
आज का कोई नेता या राजनीति पार्टी जो आंबेडकर की मूर्तियां लगा-लगा कर लोगों को मूर्ख बनाने व अपना उल्लू सीधा करने में लगे हैं, क्या बाबा साहब के कहे एक भी शर्त को मानते हैं? भीमराव अम्बेडकर के विचारों के सबसे बड़े हत्यारे तो भारत के नेता और राजनीतिक पार्टियां हैं!
अब देखिए क्या-क्या इन पोलिटिकल हत्यारों ने हिंदू समाज के साथ किया?
जाति व्यवस्था को तोड़ कर हमारे सभी जातिगत व्यवसाय म्लेच्छों को सौंपने और हिंदुओं को लड़ाने का बड़ा षड्यंत्र किया, आरक्षण के आधार पर एक नया शोषक सामंतवादी व्यवस्था का निर्माण किया और देश के पूरे पोलिटिकल सिस्टम पर कब्जा कर लिया। आज हमारे छोटे नाई के पूरे व्यवसाय पर म्लेच्छों का कब्जा है। दिल्ली जैसे महानगर में एक भी हिंदू नाई नहीं मिलता! ऐसे ही अन्य जातिगत व्यवसायों के साथ भी हुआ है।
छोटे जैसे नाई आज भी शोषित हैं और इनके शोषक सत्ता में दल बदल-बदल कर बैठ रहे हैं व म्लेच्छों का तुष्टिकरण-तृप्तीकरण कर रहे हैं। म्लेच्छों को OBC का आरक्षण तो दे ही रहे हैं और आगे SC/ST आरक्षण में हिस्सा देने का रास्ता भी तैयार कर रहे हैं! भारत का पोलिटिकल एलिट हिंदुओं को छिन्न-भिन्न कर ‘म्लेच्छ वोट बैंक’ आधारित व्यवस्था बनाने की ओर तेजी से अग्रसर हैं!
इसका प्रभाव क्या पड़ा?
हिंदू लड़ते रहे, अपना जातिगत व्यवसाय खोते रहे, जाति के VIP नेता, नौकरशाह, सामंत व लठैत आरक्षण का असीमित लाभ लेते रहे, प्रतिभा का पलायन होता रहा, IIM/IIT का ड्रॉप आउट रेट बढ़ता रहा, म्लेच्छों को असीमित फायदा मिलता रहा, हमारे प्रतिभा पलायन से विदेशी कंपनियां आगे बढ़ती रहीं, हम अब विदेशी विश्वविद्यालय यहां खोलने के लिए कतार लगा रहे हैं, धर्मांतरण का धंधा बढ़ता जा रहा है!
एक दिन वह समय भी आएगा जब पूरा हिंदू समाज समाप्त हो जाएगा, क्योंकि जाति व्यवस्था हिंदू समाज का कवच था! उसके बाद हमारे नेता चिल्लाएंगे, “देखो ‘वन वर्ल्ड-वन रिलीजन’ के रूप में हमने शोषण समाप्त कर समानता आधारित ‘न्यू इंडिया’ का निर्माण कर लिया है!
…और मूर्ख हिंदू आज की ही तरह पुनः इनका दरी बिछाने, झंडा उठाने और नारा लगाने के धंधे पर लग जाएंगे!
हिंदू समाज एक गहरे ट्रैप में फंस चुका है। इससे बाहर वह तभी निकल सकता है जब वह अपने शास्त्रों व शोध को पढ़े तथा भारत के ‘पोलिटिकल एलिट’, ‘मीडिया एलिट’ व ‘एकेडमिया एलिट’ पर आंख बंद कर विश्वास करना बंद कर दे!