श्वेता पुरोहित। विश्वामित्र के यजमान : त्रिशंकु रामायण में कथा आती है कि एक त्रिशंकु राजा हुए हैं जिनको सशरीर स्वर्ग भेजने के लिए ऋषि विश्वामित्र ने यज्ञ किया था। जब देवाताओं ने त्रिशंकु को सशरीर स्वर्ग में प्रवेश नहीं करने दिया तो विश्वामित्र दूसरे स्वर्ग की ही रचना करने लगे थे। कहते हैं कि वह त्रिशंकु न इधर का रहा न उधर का, बीच आकाश में अधर लटक गया।
दक्षिण खगोल में सैंटोरस नक्षत्र मण्डल है, जिसे भारत में नराश्व अर्थात् आधा घोड़ा, आधा मानव कहा जाता है। उसके पास दक्षिण में एक छोटा तारा मण्डल है जिसे क्रुक्स (CRUX) कहा जाता है। इसमें चार तारे एक सूली या सलीब या ईसाइयों के क्रास की आकृति बनाते हैं। क्रुक्स का अर्थ भी क्रास ही है।
अलबेरुनी ने लिखा है कि दक्षिणी खगोल में एक तारा मंडल को भारतीय खगोलवेत्ता शूल नाम से पुकारते हैं। वास्तव में यह मंडल ही त्रिशंकु तारामण्डल है। क्रुक्स के चार तारे वास्तव में पुराने समय में दक्षिणी समुद्र की यात्रा करने वालों के लिए कम्पास या दिशा सूचक का काम करते थे। अधर लटकते हुए तारामण्डल को देखकर ही उक्त आख्यान की कल्पना की गई थी।
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